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शीतल समीर -लेखनी कविता -08-Jun-2022

देखो बह रही है मादक शीतल समीर
चारों ओर शीतलता का फैलाती नीर।

कभी संदेशा प्रियतम का संग में लाती है
कभी विरह का दर्द प्रेमी तक पहुँचाती है।

मंद-मंद गति से नववधू-सी इठलाती चलती
कर हर्षित सबके मन को लुभाती चलती।

कभी ये जब अपना रौद्र रूप है दिखाती
हमें प्रकृति का महत्त्व व प्रकोप समझाती।

सर सर सरसराती हुई ये बहती जाती
कानों में मिश्री घोल मधुर गीत सुनाती।

कभी अपने संग फूलों की खुशबू लाती
चिड़ियों की चहकन का राग भी सुनाती।

अमीर-गरीब का भेद यह है नहीं जानती
सबके पास हंसती-खिलखिलाती जाती।

धन-दौलत के वैभव से ये न है ललचाती
शीलता को संग ले सबके समीप जाती।

सौम्य रूप होता है इसका मनभावन
दिल को छूकर कर देती अति पावन।

वीभत्स रूप धरकर जब सबक सिखाती
आँधी-तूफान बन विध्वंसक रूप  दिखाती।

प्रकृति का अंश बन परोपकारी कहलाती
छेड़छाड़ करने वालों को सबक सिखाती।

प्रकृति ने दिया है पवन रूपी अनुपम उपहार
समझ महत्त्व इसका मानो उसका उपकार।

किया तुमने इसका अपमान कर इसे गंदा
बच ना सकोगे नियति मारेगी जब डंडा।

वायु को प्रदूषित होने से हमें बचाना होगा
प्रकृति का कर्ज़ इस तरह ही चुकाना होगा।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल

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5 Comments

Gunjan Kamal

17-Jul-2022 09:09 PM

बहुत खूब

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Zakirhusain Abbas Chougule

09-Jun-2022 12:18 AM

Very beautiful

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Reyaan

08-Jun-2022 11:10 PM

👌👏🙏🏻

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